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प्रतीक्षा
#प्रतिक्षा

स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,

सांसों में बसी, उसकी ही धुन,
हर पल जैसे कोई सजीव जुनून।
मन का समर्पण, तन की प्यास,
प्रेम में डूबी, यह अनंत आस।

कई जन्मों का संग, वो अनकहा वचन,
अब मिटने चला है ये विरह का क्षण।
जैसे हिमालय से मिले सागर का जल,
शिव संग गौरा का प्रेम, अडिग और अटल।

सदियों की तपस्या, साधना का फल,
मिलन में बहेगा प्रेम का अमर जल।
कण-कण में बसी अब प्रेम की ये डोर,
शिव-शक्ति का संग, सजीव और गहन भोर।

— हितेन बिस्वाल

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© Hiten Biswal