एक रात
16 दिसंबर 2012 की रात
जैसे सुनसान सड़क
अभी तक गहरी है
काली घनी और अदृश्य
न उस दिन कुछ दिखा
न आज कुछ दिखता है
एक मातम सा पसरा है
चारों दिशाओं में
कौन सी रात कब किसे
कहां लील जाए
हां कुछ रौशनी...
जैसे सुनसान सड़क
अभी तक गहरी है
काली घनी और अदृश्य
न उस दिन कुछ दिखा
न आज कुछ दिखता है
एक मातम सा पसरा है
चारों दिशाओं में
कौन सी रात कब किसे
कहां लील जाए
हां कुछ रौशनी...