...

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#प्राकृतिकसुषमा #कवि
सुबह की तरोताजा
प्रसन्न हवा उनमुक्त होकर बह रही ।

ताजा ताजा खिले पुष्प भी
इतरा इतरा कर गंध घोलते हवामें ।

नयी नयी कोपलें पौधों पर
मंद मंद मुस्कुराकर हँस रही ।

मुरझाये हूए पौधे भी
त्यागकर आलस्य तनकर है खडें ।

रातभर की बंध खिड़कियाँ
मुर्छा त्यागकर सजीव हो उठी ।

थमी थमी सी चहल पहल...