...

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वो चहरे...
याद है आज भी मुझे वो चहरे, जिन्हें देखकर ही मेरी हर सुबह हुआ करती थी,
याद है वो सब अल्फाज, जिन्हें सुनकर अक्सर मेरी रातें गुजरा करती थी,
बिन बताए बिन बुलाए, एक मुस्कान मेरा हाल चाल पूछा करती थी,
नींद ना आए तो सुला देती, जिसकी आंख मेरे साथ खुला करती थी,
सन्नाटे मुझसे बातें करते , महफिल में अक्सर शोर किया करते थे,
कभी नासमझी का दौर चलता था तो कभी समझदारी में आगे बढ़ जाती थी ,
वो एक खूबसूरत सी दिखने में मासूम सी लड़की अपनी दोस्ती के किस्से सुनाए करती थी,
फिलहाल तो अब हालत ऐसी है,मुझे नहीं पता की वो मासूम सी लड़की कैसी है,
न अब बातों का शोर है,और ना ही मुलाकातों का जोर है ,
पर ठीक ही है जो अब वो मेरे पास नहीं है ,
फरेबी है वो चहरा अब उसमे ऐसी कोई बात नही है।

© nainshi anand