...

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सागर तेरी पुकार...
सागर अन्नत है तेरा प्रसार,
है! सागर तू है कितना अपार।
विश्व धरातल पर तू है समाया,
यह संसार सिर्फ तेरी कड़वाहट को ही जान पाया।
जितनी है गहराई तेरी,
उतना ही है गहरा विचार।
है ! सागर तू फैला है, मीलों हजार।
हम प्राणियों को मंथन में मिला जल।
तुमने शिव बनकर
कड़वाहट सारी अंदर समेटकर ,
सुरक्षित की है ये धरातल।
नीलकंठेश्वर की तरह, तुम्हारी भी नीली है हर धार।
है! सागर अन्नत है तेरा विस्तार।
हर जीवन को संतुष्ट करती हुई,
तुझमें मिल जाती है नदी की धार।
मिलकर बताती है, कितनी कड़वाहट है लोगो के दिलों में,
बताती है हर अच्छे - बुरे विचार।
इस जीवन का भी ही सके,
समंदर सा विस्तार,
ये जीवन रंगमंच है,
हम तो महज है किरदार।
मन समंदर सा हो विशाल,
हो नदियों सा मृदु विचार।
क्या कहा हमने हर बात भूल जायेगा यह संसार,
याद रखा जायेगा सिर्फ हमारा व्यवहार।
कड़वाहट सारी पीकर,
होना है मुझे समंदर सा किरदार।
जितनी गहराई है समंदर की,
उतना ही है गहरा विचार।
है ! सागर अन्नत है तेरा प्रसार।
© मनीषा मीना