...

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ना जाने क्या नशा है तुझ में
ना जाने क्या नशा है तुझ में
तुझे ही लिखते रहते हम है,
किताब के हर पन्ने पे
तेरा ही ज़िक्र करते हम है।
सुबह मेरी होती तुझ से,
रंगरेज़ हो तुम मेरे जीवन के
दिलकुशा है तेरा हर अन्दाज़
लफ़्ज़ में ढाल लिखते हम है।
और गुलाब सी महक सा
हर एक लफ़्ज़ महकता है।