...

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ओ फौजी बनकर आया था!!!!
अपना सबकुछ कुर्बान कर चुका
सबकुछ अपनों के नाम कर चुका


उड़ान खरीद कर तो दे दी सबको
पर किसको पता है अब भी यहाँ
ओ अपने पंख भी नीलाम कर चुका


कामिल नजरें चुस्त शरीर चौड़े सीने
नहीं ये सब ही काफी नहीं है उसके



जिस बदन ने चुना है वर्दी को आज
उसने अपनी धड़कने अनसुनी करी है


घर याद आता नहीं है उसको
अब कहता है कि आदत नहीं है
यही जताते अब वो हरदम चलता है



मैंने देखा है फिर भी अपनों की तस्वीर
वो अपने बटुए में छुपाये चलता है!!!


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