...

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रूठ भी जाया करो।
देखो,
कभी कभी रूठ भी जाया करो,
और मैं फिर तुम्हें
मनाने के लिए तड़प उठूंगी...
कभी मिन्नतें करुँगी,
कभी बाल सवारूँगी,
कभी आँख मिला कर मुस्कुराऊगी,
कभी आँचल लहरा के सताऊंगी
बिना शक़्कर की चाय का घूँट लिया हो,
कभी ऐसा मुँह बनाओगी।
कभी टकटकी लगा कर देखूंगी
फिर बोहें चढ़ा के इतराओंगी।
कभी जूठी चोट का बहाना कर
आँसू भी बहाऊंगी।
नयी नयी कहानियां सुना के
खुद ही ठहाके लगाऊँगी।
तुम्हें मनाने के हर बेतुके अल्हड़पन से
गुज़र जाओगी।
पर तुम मेरी हर हरक़त पर हँस जाना
औऱ समझना
मेरी हर कहानी का सार तुम हो,
मेरा सँसार तुम हो,

मेरे भीतर छुपा
भावनाओं का अम्बार तुम हो,
तुम्हारे मेरे
रूठने मनाने के खेल से
मैं खुद को खंगालती हूँ
कहाँ कहाँ छिपी हैं मोहब्बत
वो निकलती हूँ।
और सुनो बहाने बहाने से तुम भी आज़माया करो
और कभी कभी रूठ भी जाया करो।
© maniemo


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