कोई तो मिला दो, ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से
#parasd
कहीं, खो गया है सुकून ज़िन्दगी से
किसी रास्ते पर, निशान कदमों के जैसे।
मन का मुसाफ़िर, मंज़िल से ख़फ़ा क्यों
जैसे पानी पे है, बुलबुले बनते बिगड़ते।
दरिया तो बहेगी, किनारों का क्या है
डूबे हर ज़ुबान में, अरमान कैसे-कैसे।
वो लिखता रहा है, हर एक घरौंदा
रिश्ते मगर है, ख़ुद से बहके-बहके।
की जुस्तजू में उम्र, गुज़ारी हमने सारी
कोई तो मिला दो, ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से।
© paras
कहीं, खो गया है सुकून ज़िन्दगी से
किसी रास्ते पर, निशान कदमों के जैसे।
मन का मुसाफ़िर, मंज़िल से ख़फ़ा क्यों
जैसे पानी पे है, बुलबुले बनते बिगड़ते।
दरिया तो बहेगी, किनारों का क्या है
डूबे हर ज़ुबान में, अरमान कैसे-कैसे।
वो लिखता रहा है, हर एक घरौंदा
रिश्ते मगर है, ख़ुद से बहके-बहके।
की जुस्तजू में उम्र, गुज़ारी हमने सारी
कोई तो मिला दो, ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से।
© paras