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बेज़ुब
बेज़ुब

मानव कहते हो ख़ुद को ,
पर जानवार से भी बदतर हो ।
आशा थी उसे इसलिए आई तुम्हारे पास ,
अपने बच्चे के खातिर तुमसे कुछ खाने को मांगी ।
खाना देख उसको तुमपे विश्वास हुआ ,
मगर वो भूल गयी थी कि ,
मानव तो जानवार से भी बेकार हो गया ।
खाने के साथ तुमने बारूद था खिलाया ,
ख़ुद भी खा लेते साहब ।
तकलीफ उसे भी हुई ,
माँ वो भी थी ,
बच्चा उसके भी कोख में था ,
कसूर क्या था उसका ?
बेज़ुबान थी या खाना मांगना पाप था उसका ?
श्री गणेश के स्वरूप हैं जो ,
उसे ही तुमने मौत के घाट उतार दिया ।
इंसानियत को तो तुमने सूली ही चढ़ा दी आज ,
बेज़ुबान की ह्त्या की हैं तुमने ।
पर याद रखना मूर्ख तुम ,
यह प्रकृति भी तुम्हारा विनाश करेगी ,
बच न पाओगे उसके कोप से ।
कुरूप इंसानियत देख ,
लज्जित पूरा संसार हुआ ।
इंसानो से बैर रखने वाले भी ,
आज बेज़ुबान को अपना ,
फिर एक बार शिकार हैं बनाया ।

© _marwadi_chokri_❤

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