...

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भोर
मेरे गाँव की निराली भोर है
सड़को पर सन्नाटा
सन्नाटो का अलग ही शोर है।
एक गिलास वो चाय की प्याली
उसके बिना कहा है सुबह हमारी।
वो छिड़ियो का चहचहाना
ठंडी मद्धम हवा बहती है।
मनो जैसे कुछ कह रही हो,
ऐसे गांव की संदली मिट्टी रहती है।
ईश्वर के गुंजते भजन
वो सुबह की अखबार
बच्चों की शरारतें
वो माँ की पुकार।
सुकून ठहरता है मानो
उस शोर में
ऐसा एक अपनापन बस्ता है,
मेरे गांव की भोर में।

_कीर्ति