...

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मनोभाव
मनोभाव...⊙

तुम्हें लिखना…
बहुत मुश्किल था…
पर ये जानते हुए भी…
मैंने तुमको लिखा…
महज़ इतना सोचकर कि…
एक ना एक दिन…
मेरी ये तमाम…
लिखी हुईं बातें…
मेरे ये जज़्बात…
तुम पर असर छोड़ेंगे…
लेकिन वास्तव में…
ऐसा कभी ना हुआ…
और आगे भी शायद…
ये होना #नामुमकिन_सा_है…
क्यूँकि अब लगने लगा है कि…
ना ही तो मेरी बातों से…...