कहीं गुम सा गया हूँ
खुद में ही कहीं गुम सा गया हूँ,
ना जाने ये दर्द कब से सह रहा हूँ।
अपनों के बीच कहीं पराया सा हो गया हूँ,
कि नम आँखों से वो अपना चेहरा नहीं देख पा रहा हूँ।
दिल में बसी यादें, अब दर्द बन गई हैं,
बातों मे भी अब बस ख़ामोशी आ गई हैं।
अपने भी अब, अजनबी से लगते हैं,
भरी महफ़िल में भी अब मैं अकेला सा रहता हूँ।
जिंदगी की इस राह में खुद को कहीं खोता चला गया हूँ,
हाँ शायद आज अपनों के बीच कहीं पराया हो गया हूँ।
© Sujal
ना जाने ये दर्द कब से सह रहा हूँ।
अपनों के बीच कहीं पराया सा हो गया हूँ,
कि नम आँखों से वो अपना चेहरा नहीं देख पा रहा हूँ।
दिल में बसी यादें, अब दर्द बन गई हैं,
बातों मे भी अब बस ख़ामोशी आ गई हैं।
अपने भी अब, अजनबी से लगते हैं,
भरी महफ़िल में भी अब मैं अकेला सा रहता हूँ।
जिंदगी की इस राह में खुद को कहीं खोता चला गया हूँ,
हाँ शायद आज अपनों के बीच कहीं पराया हो गया हूँ।
© Sujal