...

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अबकी बार दिवाली में... (कविता)

अबकी बार दिवाली में... (कविता)

राष्ट्रहित का गला घोंटकर,
अभि छेद न करना थाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में..
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दिये बिकें बाज़ारों में...
छुपी है वैज्ञानिकता अपने,
सभी तीज़-त्यौहारों में...
चायनिज़ झालर से आकर्षित,
कीट-पतंगे आते...