...

15 views

विरह गीत
राधिका प्रेम में खो के बीती उमर
ग्वाल बालों के संग खेल कर झूम कर
बांसुरी औऱ राधे तो जीवन मेरे
कैसे बिछरूँगा इन से यू मुँह मोड़ कर

प्रण ये लेता हूँ राधे तेरे प्रेम में
बाँसुरी भी यहीं छोर जाऊंगा मै
उम्र भर ये विरह दंष झेलूंगा अब
न कभी प्रेम के गीत गाऊंगा मैं

है ये निष्ठुर विधाता तो ये हीं सही
भीख उनसे दया के न मांगूगा मैं
तुम हो मुझ में बसे मन की शक्ति तुम्ही
तुम न चाहे तो मथुरा न जाऊं कभी !!


तुम न मायूस हो हे सखे सावरे
राधिका यूँ प्रभु को बताने लगी
प्रेम मुक्ती का रस है इसे जो चखे
पाने खोने के हर गम खुशी के लिए

तुम विधाता हो चाहे तो रुख मोर दो
भाग्य से इस विरह को मिटा दो अभी
पर मैं चाहूं तुझे ना ये अपयश लगे
खुद हीं तोड़े नियम जो बनाये कभी !!

तेरे दायित्व हैं सच को आधार दो
धर्म के वास्ते प्रेम को वार दो
हैं युगों से तेरी हीं प्रतीक्षा में जो
तुझ पे हक़ उनका भी उनके अधिकार दो !!
© eternal voice