" मैं ऐसी हुँ "
मैं खुद को पानी जैसी लगती हूँ
अपनों के लिए बर्तन के पानी जैसी उसके अनुरूप ही रहती हूँ
उन्नत्ति के लिए नित निरंतर नदी जैसे बहती हूँ
गर आये क्रोध कभी तो समुन्दर के सैलाब सी उठती हूँ
कि मैं खुद को पानी जैसी लगती हूँ
प्यास ,प्रेम...
अपनों के लिए बर्तन के पानी जैसी उसके अनुरूप ही रहती हूँ
उन्नत्ति के लिए नित निरंतर नदी जैसे बहती हूँ
गर आये क्रोध कभी तो समुन्दर के सैलाब सी उठती हूँ
कि मैं खुद को पानी जैसी लगती हूँ
प्यास ,प्रेम...