...

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कोई साथ नहीं
चले आए उस मोड़ पर हम जहां कोई साथ नहीं,
कहते हैं सब हम अपने हैं, कहते हैं सब हम अपने हैं
पर इस जीवन की राह में आज कोई साथ नहीं
एक पल कहीं रुक के कभी पूछता हूँ खुद से मैं
साथ चलने का वादा कितनों ने किया हमसे
पर कोई भी आज पास क्यों नहीं है।

कहते हैं सब हम समझते हैं तुम्हें,
फिर क्यों बयां करनी पड़ती हर बात हमें है।
मन के सवालों में कुछ यूहीं उलझा सा हूँ मैं,
मानो जैसे कोई धागा उलझा हो डोरियों में अपने।
जितनी कोशिश करता हूँ, जवाबो को पाने की,
उतना ही उलझ सा जाता हूँ उस डोर में कही।
कहते हैं सब हम सुलझा देंगे इस डोर को,
पर फिर क्यूँ कोई आज भी साथ नहीं।

अब रुकता नहीं किसी के इंतजार में कहीं,
छोड़ दिया उन सवालों को अनजाने राह में कहीं।
मिल जाते हैं अब कुछ रहगीर हमें भी,
पर चलता कोई ना दूर तक साथ अपने कभी।
हर कोई अपनी मंजिल तक साथ छोड़ जाते,
पर हम भी अब रुकते नहीं कहीं किसी मोड़ पे कभी।
अलविदा कहते अब हम भी बढ़ चले जाते हैं ल,
चुन ली हैं हमने भी ये ज़िंदगी की राह नई।
जिस राह पे अब कोई भी साथ नहीं,
हा, कोई भी साथ नहीं…