...

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प्रवासी मजदूरों के दिल की आवाज
जिंदा रहे तो फिर से आयेंगे बाबू
तुम्हारे शहरों को आबाद करने ।

वहीं मिलेंगे गगन चुंबी इमारतों के नीचे
प्लास्टिक के तिरपाल से ढकी झुग्गियों में ।

चौराहों पर अपने औजारों के साथ
फैक्ट्रियों से निकलते काले धुंए जैसे होटलों और ढाबों पर खाना बनाते ।

बर्तनो को धोते
हर गली हर नुक्कड़ पर फेरियों मे
रिक्शा खींचते।

आटो चलाते रिक्शा चलाते पसीने में तर बतर होकर तुम्हे तुम्हारी मंजिलों तक पहुंचाते ।

हर कहीं फिर हम मिल जायेंगे तुम्हे
पानी पिलाते गन्ना पेरते ।

कपड़े धोते , प्रेस करते , सेठ से किराए पर ली हुई रेहड़ी पर समोसा तलते या पानीपूरी बेचते ।

ईंट भट्ठों पर ,
तेजाब से धोते जेवरात को ,
पालिश करते स्टील के बर्तनों को ।

मुरादाबाद ब्राश के कारखानों से लेकर
फिरोजाबाद की चूड़ियों तक ।

पंजाब के हरे भरे लहलहाते खेतों से लेकर लोहा मंडी गोबिंद गढ़ तक।

चाय बगानों से...