ग़ज़ल
२१२२-११२२-११२२-२२/११२
मुश्किलें रहती हैं हर वक़्त मुक़ाबिल मेरे
पाँव यूँ बढ़ते नहीं जानिब-ए-मंज़िल मेरे
इसलिए होने लगा गैंग अदू का तगड़ा
क्योंकि उसमें हैं कई दोस्त भी शामिल मेरे
एक हल करता हूँ फिर दूसरा आ जाता है
क्या...
मुश्किलें रहती हैं हर वक़्त मुक़ाबिल मेरे
पाँव यूँ बढ़ते नहीं जानिब-ए-मंज़िल मेरे
इसलिए होने लगा गैंग अदू का तगड़ा
क्योंकि उसमें हैं कई दोस्त भी शामिल मेरे
एक हल करता हूँ फिर दूसरा आ जाता है
क्या...