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किवाड़ खोलो तो सही
किवाड़ खोलो तो सही

खुशियाँ जब आए
मधुर मुस्कान के सँग चेहरे खिल खिल जाएँ
खुशकिस्मती सँग लाए
मधुर वाणी में पपीहे गाएं
भोर की पहली किरण भी
नित नव गीत सुनाए
तब ढ़ोल ताशे सब
सँग सँग गाए
गुनगुनाते हुए मौसम
खुशियों की बहार लाए
भोर की किरणें भी अब तो
गुनगुनातें गुनगुनाते थक गईं
इनकी ताल पे ही जरा
थिरकन दिखाओ तो सही
इक बार मुस्कुराओ तो सही
किवाड़ पे खुशियाँ
दस्तख दे रही
किवाड़ खोलो तो सही
मुख से मधुर शब्द बोलो
तो सही
क्या हुआ जो कल हारे थे
तुम्हारी मुस्कान जीत का आगाज़ कर गई
मीठी सी मुस्कान से
अपने दिल को
समझाओ तो सही
अब न बोलोगे तब कब बोलोगे
खुशियों के किवाड़
कब खोलोगे
अपने लिए कुछ...