...

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“ये ज़ख़्म कहां भर पाते हैं”
ज़रा सा मुस्कुरा क्या लिए
लोग ज़ख़्म कुरेदने आ जाते हैं
भर रहे घावों पर फिर से
नमक छिड़कने आ जाते हैं
ज़रा सा जी क्या ली हमने ज़िंदगी
लोग मौत का आईना दिखा जाते हैं
उभर रहे सपनों को फिर से
जमकर तोड़ने आ जाते हैं
ज़रा सा मिल क्या लिए ख़ुद से
लोग मुंह मोड़ने आ जाते...