...

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वो ख्वाइश...
इसी खिड़की से बातें होती थी, बड़ी देर तक बातें होती थी.

रुतबा कमाने की मुझे लत जो लग गयी, तब से बंद हो गयी खिड़की

अचानक एक दिन उसकी याद आयी
बहुत ढूंढा, पूछताछ की, कही मिली नहीं,
सुना किसी कलाकार के साथ भाग गयी.


कई साल बीते, कही से एक चिट्ठी आयी
'कभी खिड़कियां साफ़ किया करो' - उसीकी थी चिठ्ठी
दौड़ा आया खिड़की के पास,
बहोत धूल जमी थी
उसकी छबी धुंदली सी दिख रही थी
खिड़किया साफ करने की बड़ी कोशिस की
पर रुतबे कमाते, खोकले हुई मेरी कलाई, वह धूल साफ़ न कर पायी.
जो छबी धुंदली सी रेह गयी
वो ख्वाइश की थी शायद...
© omkar's