...

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ग़म का धुआं
शहर में चारों तरफ़ फैला है ग़म का धुआं
नज़र आता नहीं है मुझे साफ़ ये आसमां

न जाने कौन सी रुत आई है इस बार
सोचती हूॅं मैं जाऊं तो जाऊं अब कहां

हुई हूॅं सबसे बेख़बर इस कदर बेहाल मैं
जब से लुटा है मेरे दिल का ये आशियां

सूनी सी हैं आंखें तेरे दीदार को तरसती
काटने को दौड़ता है तुझ बिन मुझे ये जहां

आ जा तू वापस अब इतना तू मुझे न तड़पा
ऐ "हिना" रास आती नहीं मुझे ये वीरानियां
© Hina


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