ग़म का धुआं
शहर में चारों तरफ़ फैला है ग़म का धुआं
नज़र आता नहीं है मुझे साफ़ ये आसमां
न जाने कौन सी रुत आई है इस बार
सोचती हूॅं मैं जाऊं तो जाऊं अब कहां
हुई हूॅं...
नज़र आता नहीं है मुझे साफ़ ये आसमां
न जाने कौन सी रुत आई है इस बार
सोचती हूॅं मैं जाऊं तो जाऊं अब कहां
हुई हूॅं...