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वक्त बेह रहा है।
में ठहरा हुआ हूं और वक्त बेह राहा हे,
हवाएं बालो को मेरी महबूबा की तरह सहलाते हुए इश्क जाहिर कर रही है मगर में कहीं खोया हुआ हु,
इस वक्त में रेत की तरह बहता ख़िज़ाँ की तरफ फिसल ता चला जा रहा हुं,
में ठहरा हु और जहां बदल रहा है।
ख़िज़ाँ - Autumn, Decay.
#यात्राकानजर
#poetizers
© Shivam.Luhana
© Poshiv
हवाएं बालो को मेरी महबूबा की तरह सहलाते हुए इश्क जाहिर कर रही है मगर में कहीं खोया हुआ हु,
इस वक्त में रेत की तरह बहता ख़िज़ाँ की तरफ फिसल ता चला जा रहा हुं,
में ठहरा हु और जहां बदल रहा है।
ख़िज़ाँ - Autumn, Decay.
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