...

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वो मुलाकात!
दीदार क्या हुए उनसे,
दीवानगी को कुछ हवा लग गई।

तीखी थी नज़रें , हाय! ये दिल के पार हो गई।
आवाज नहीं वो जैसे जादू था कोई,
कानो ने कुछ सुना और सुना भी नहीं।

जब गईं निगाहें होटों पर
दिल में कुछ बैचेनियां- सी जग गईं।

थी ख्याईश गुस्ताख़ी की,
छू कर ख्याब को जिंदा करने की।
ये तो बस एक लम्हा था
होश आया जब
वो तब तक फना कर चुकी थी।

© Neha Bharti
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