...

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कल और आज
बदलते वक्त के अनुसार इंसान ढलते जा रहे हैं,
कल के राम और आज वो रावण बनना चाह रहे है।

बहन की रक्षा के लिए राम बनो,खुद को रावण मत बना लो,
ताकि खुद की बहन की रक्षा में, दूसरों के बहन के साथ कोई गलत कदम ना उठा लो।

विकास के रफ्तार में इंसानियत बहुत पीछे छूट गई,
संस्कार की तो बदलते वक्त के साथ इंसानों से नाता है टूट गयी।

कल तक किताबे संभालने वाली लड़कियां आज बाल संवारने में लगीं हैं,
कल तक जो लिहाजो में दबी रहती थी आज उसे लिबजो की कमी खलने लगी हैं।

बाजार में धनिया-पुदीना से ज्यादा बाबू सोना वाले दिख रहे हैं,
अपने लक्ष्य को पूरा करने के उम्र में, लव के फंडे सीख रहे हैं।


कल तक रिश्ता टूटने के बाद जोड़ने पर गांठ बन जाते थे,
और आज एक रिश्ता टूटने से पहले ही आठ बन जाते हैं।

आजकल की लड़कियां भी गजब का कहर ढाहती है,
गलत सुनकर प्रतिकार करने के बजाय वो देखकर शर्माती हैं।

कल तक जो घड़ी समय की कीमत बताती थी,
आज वो बस कलाई की शोभा बढ़ाती है।
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© Durgesh kumar