...

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प्रवासी मजदूर
आज मजदूर मजबूर हैं, उसकी मंज़िल होती जा रही है दूर है.
रास्ता चटान बना हुआ है, दुख में भी चेहरा खिला हुआ है.
भूक में रोता बच्चों की आवाज कानो मे गूंजती है, हर बार जिंदगी इन्ही की क्यू इंतिहा लेती है.
दर्द भर पूर है, हा ये प्रवासी मजदूर है