...

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यकीन
की मिलने को थे..
और मिले नहीं...
यकीन नहीं होता...
हम उस नाव की तरह थे...
जो किनारे से महज दो कदम दूर थी..
और खो गई समदर में...

की तुम हकीकत बनने को थे...
और कभी मिले नहीं...
यकीन नहीं...