...

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यकीन
की मिलने को थे..
और मिले नहीं...
यकीन नहीं होता...
हम उस नाव की तरह थे...
जो किनारे से महज दो कदम दूर थी..
और खो गई समदर में...

की तुम हकीकत बनने को थे...
और कभी मिले नहीं...
यकीन नहीं होता...
मैं आज भी तुमसे बस खावों में मिलती हूं...
ऐसे खाव जो सामने आने को थे...
जो हमेशा के लिए टूट गए...।

की तुम मेरे करीब थे...
और मुझसे दूर हो गए..
यकीन नहीं आता ये वक़्त इतना क्यों बदल गया...
की तुम उस रेत की तरह थे...
जिसे मैं जितना मुठ्ठी में बंद करती..
वो उतना ही सरक जाती।
© jyoti