वक्त.. मैं और मेरी दोस्त
बहुत कुछ कहना था उससे
ढेर सारी बातें करनी थी
कुछ अपनी बतानी थी..
कुछ उसकी सूननी थी
वो कहती तो है कि..याद आती है तेरी
पर ना जाने क्यूं..उसकी जुबां पर मेरा जिक्र नहीं था
नहीं, ऐसा नहीं है कि वो मसरुफ़ ठहरीं
फुर्सत तो थी उसके पास
पर वो...
ढेर सारी बातें करनी थी
कुछ अपनी बतानी थी..
कुछ उसकी सूननी थी
वो कहती तो है कि..याद आती है तेरी
पर ना जाने क्यूं..उसकी जुबां पर मेरा जिक्र नहीं था
नहीं, ऐसा नहीं है कि वो मसरुफ़ ठहरीं
फुर्सत तो थी उसके पास
पर वो...