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उनकी बदमाशियां😘😍
कुछ कदम चल चुकी थी
रात की सरगोशियां
धीरे से फिर चाँद आया
गुनगुनाते मदहोशियां
मै ठिठकती रही ..सुन
उनकी वो बदमाशियां
कह रहे थे चाँद है तू
फिर चाँद क्यों इक औऱ हैं
चाँदनी छुपती भी हैं
छुपती कहाँ ज़ुल्फों
की ये बदमाशियां
हुस्न से तौबा भी की तो
महक तेरी ढूंढूं कहाँ
जहनसीब न कर तबाह
कैद में हैं दिल मेरा
आपका तो शितम भी
अब रोज़ मेरी हैं दवा
लव सिले थे
धड़कन फुदकती
कुछ औऱ न कह सकी
मैं शरम की ओढ़ चादर
सो गई बाहों तले





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