...

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अश्क
लाख कोशिश कर लो
दबाने की,ये दब नहीं पाता है"
ख़ुशी हो या ग़म ये फट से
छलक आता है"

कमबख्त ये अश्क
हाल ए दिल की दशा को
दुनियाँ के सामने उजागर
करने में देर नहीं लगाता है"

मन को तसल्ली देता रहा
दिल को मैं समझाता रहा
खुश रहने की मुद्रा में मैं
खुद को ढालता रहा
पर कम्बख़्त ये अश्क है जो
छलकने से बाज़ आता नहीं है"

ज़माने के सामने हकीकत से सामना
करवाये बिना ये पिछा छोड़ता नहीं है"

दिन में इन्हें पलकें को भिगोने का
मौका नहीं मिला तो
रातों को तकिये भिगोये बिना रहता नहीं है"

अपना करतूत ये
दिखाए बिना रहता नहीं है"

कम्बख्त ये अश्क हाल ए दिल की
आलम को दुनियाँ के सामने
उजागर किये बिना रुकता नहीं है"

सोचा जो भी गीले- सिकवे है ज़िन्दगी से
उन्हें खुद ही दिल में समेट कर जी लूंगा
लेकिन कम्बख्त ये अश्क है जो
हर किया कराये पर पानी फेरे बिना
कभी रुकता ही नहीं है".