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चांद हठ कर बैठा अपनी माँ से।
एक बार की बात थी,
घनघोर अंधेरे की रात थी,
चांद हठ कर बैठा अपनी माँ से
नहीं जाऊंगा मैं आसमान में,
प्यार से सिर सेहलाते हुए चांद की माँ ने पूछा चांद से
आखिर क्या बात है क्यों छाई है चेहरे पर उदासी
चांद बोल पड़ा,
खुद को संभालते हुए,
कहानियां और लोरी सुन कर लाड से
सभी बच्चे सोते हैं अपनी मां की गोद में आराम से
सब सो जाते हैं रात में
बस अकेला मैं ही होता हूं अंधेरे से भरे आसमान में
अखिर क्यों होता है क्यों अन्याय सिर्फ मेरे साथ,
कहां करू मैं इंसाफ की मांग,
माँ मुसकाई चांद की इस नदान बात पर ओर कहा बात तो सही है तुम्हारी,
हक है तुम्हारा बाकिओ तरह चैन से सोना,
पर कौन है बलवान,
जैसा मेरा लाल,
अगर तुम न दोगे पैरा,
तो छा जाएगा चारों ओर अंधेरा,
और रही ठंड की बात,
उसका इलाज है मेरे पास,
सितारों की चादर,
रख लो अपने पास,
चांद के चेहरे पर आई मुस्कान,
जगमगा उठा फिर से आसमान।
© Hidden Writer
inspired by a Hindi poem
घनघोर अंधेरे की रात थी,
चांद हठ कर बैठा अपनी माँ से
नहीं जाऊंगा मैं आसमान में,
प्यार से सिर सेहलाते हुए चांद की माँ ने पूछा चांद से
आखिर क्या बात है क्यों छाई है चेहरे पर उदासी
चांद बोल पड़ा,
खुद को संभालते हुए,
कहानियां और लोरी सुन कर लाड से
सभी बच्चे सोते हैं अपनी मां की गोद में आराम से
सब सो जाते हैं रात में
बस अकेला मैं ही होता हूं अंधेरे से भरे आसमान में
अखिर क्यों होता है क्यों अन्याय सिर्फ मेरे साथ,
कहां करू मैं इंसाफ की मांग,
माँ मुसकाई चांद की इस नदान बात पर ओर कहा बात तो सही है तुम्हारी,
हक है तुम्हारा बाकिओ तरह चैन से सोना,
पर कौन है बलवान,
जैसा मेरा लाल,
अगर तुम न दोगे पैरा,
तो छा जाएगा चारों ओर अंधेरा,
और रही ठंड की बात,
उसका इलाज है मेरे पास,
सितारों की चादर,
रख लो अपने पास,
चांद के चेहरे पर आई मुस्कान,
जगमगा उठा फिर से आसमान।
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