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शहर
लहरों के उफ़ान में क़हर छुपा है कहीं 
समंदर किनारे शहर बसा है यहीं

यहाँ लोग रात में जश्न मनाने का शौक़ रखते हैं 
अपने, अपनों से ही दिन-दहाड़े लुट जाने का ख़ौफ़ रखते हैं

आलम ये है की क़िस्मत ख़ुदा हो गई है जैसे 
बेसहारा नहीं बस हर शक़्स खुद से जुदा हो गया है जैसे
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