शहर
लहरों के उफ़ान में क़हर छुपा है कहीं
समंदर किनारे शहर बसा है यहीं
यहाँ लोग रात में जश्न मनाने का शौक़ रखते हैं
अपने, अपनों से ही दिन-दहाड़े लुट जाने का ख़ौफ़ रखते हैं
आलम ये है की क़िस्मत ख़ुदा हो गई है जैसे
बेसहारा नहीं बस हर शक़्स खुद से जुदा हो गया है जैसे
...
समंदर किनारे शहर बसा है यहीं
यहाँ लोग रात में जश्न मनाने का शौक़ रखते हैं
अपने, अपनों से ही दिन-दहाड़े लुट जाने का ख़ौफ़ रखते हैं
आलम ये है की क़िस्मत ख़ुदा हो गई है जैसे
बेसहारा नहीं बस हर शक़्स खुद से जुदा हो गया है जैसे
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