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पूजनीय तुम।
कविता तुम उमंग प्रतिमा प्रकृति सी।
मन दारुण में अरुण श्र्वेतिमा परकृति सी।

विपुलेश्वरी भार्गवी तुम रचना की द्योतक हो।
भुवनेश्वरी मनोगवी तुम सृष्टि की श्रोतक हो।

अधरेश्वरी तुम परिमल निसर्ग वृतांत हो।
मुक्तेश्वरी तुम वर्णन का सुनीत नितांत हो।

रस, छंदों के चंदन पुष्प से अर्चन तुम्हारा।
अलंकार से श्रृंगार तुम्हारा, वंदन तुम्हारा।

अर्थ- द्योतक-प्रकाश करने वाला
श्रोतक-श्रवण करने योग्य
श्र्वेतिमा-शुक्लत्व शुभ्रता

-kamal muni.