...

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मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी...कहाँ, कब, किस तरह से मुझे नहीं पता

हाँ,शायद! कभी हकीकत और फसाने की सरहद में मिलूंगी तुम्हें
अचानक तुम्हारे पांव थम जाए जहाँ, उस सफर की जद्दोजहद में मिलूंगी तुम्हें !!_

हो सकता है कभी महक जाऊं तुम्हारे दिल के आंगन में जज़्बातों के फूलों से पिरोया किसी खुशबूदार ग़ज़ल का अशआर बनकर_
या हो सकता है कभी छप जाऊं तुम्हारे ज़ेहन में किसी कल्पित कहानी का तुम्हारा सबसे पसंदीदा किरदार बनकर_!!

युद्धभूमि में जब योद्धा बन उतरो, तुम्हारे ललाट पर उम्मीद की तिलक बन मिलूंगी_
गर लौट आओ तुम थक-हार कर भी तुम्हारे कंधे पर थपकी और जीत की ललक बन मिलूंगी_!!

इक नयी मुकम्मल जिंदगी की आगाज़ करने तुम्हारे रूह में आशा की रश्मि बन चमकुंगी_
हर अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करने किसी शाम आसमान से टूटता तारा बन दिखुंगी_!!

मुझे नहीं पता ठीक कौन से भीड़, कौन सा शहर में टकरा जाऊंगी तुमसे,
मगर हाँ !
जारी रहेगी हजार सवाल पूछना हाथों की लकीरों से_
जारी रहेगी तुम्हारे लिए कई बार जूझना क़िस्मत की जंजीरों से_!!

मैं ज़रूर मिलूंगी तुम्हें सर्द मौसम में बदन को सुहाता हल्का सा धूप बनकर_
या फिर किसी भी बहाने, किसी भी मोड़ में, कोई सा भी रूप बनकर !!

सुकून की मुस्कान या दर्दों का ईलाज बन मिलुंगी
मैं हर आनेवाले कल में.... नया आज बन मिलुंगी

तुम भी मेरे आने का उतनी शिद्दत से इंतजार करोगे ना !?
सदियों तलक ना सही_ कुछ पल का प्यार करोगे ना !?

खैर !! जवाब चाहे कुछ भी हो....
आरज़ू है की किसी रोज़ तुम्हारे बगिये में गुलमोहर बन खिलूंगी_
कबर में आख़िरी नींद सोने से पहले इक बार मैं तुमसे जरूर मिलूंगी_!!
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी... मैं तुम्हें फिर मिलूंगी !!!!!!!!!
© tulip_tales