...

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मेरा पहला प्यार
जब मैं पहली बार उससे मिला ,
मैं उससे और वह मुझे अनजान सा था ;

करता भी क्या मैं,थोड़ा नादान सा था;

कुछ हफ्ते बीते उसे मेरा एहसास हुआ ,
मैं यूं एक कदम उसके पास हुआ;

वह मेरे वजूद से खुश, मुझे समझने की कोशिश में था;
मैं अपने में मगन ,खुद में ही गुम सा था ;

कुछ महीने बीते ,मैं उसे अपने होने का एहसास हर पल करने लगा;
उसकी बातों ,उसकी आदतों ,में मैं भी ढलने लगा;

संग संग रहते हुए ,मुझे कभी यह एहसास ही नहीं हुआ;
वह मेरा पहला प्यार है, यह तब समझ आया जब मैं उससे जुदा हुआ;

बहुत रोया तड़प के मैं, वह रोते हुए भी हंस रही थी; फिर एकाएक उसने मेरे सरापे को हुआ ;
मैं मौन आवक थोड़ा डरा सा था ,
वह मुझे सुकून देने के प्रयास में लगा था;

मेरे मौन को भी वह न जाने कैसे समझ लेता था,
मेरी खुशी के लिए न जाने क्या-क्या जतन करता था;

अब मैं थोड़ा वाचाल हो शरारतें करने लगा ,
कभी उसे नाराज कभी खुश करने लगा;

वह भी कभी-कभी रूठने लगी ,
पर अक्सर मेरी शरारतें माफ करने लगी;

यूं ही मेरे जीवन का एक पड़ाव खत्म हुआ,
वह तो वैसे ही रही पर मुझे एक नए एहसास ने छुआ;

धीरे-धीरे मेरा नजरिया बदलने लगा,
मुझे किसी और में कुछ और अच्छा लगने लगा;

उसने उसको भी अपना बना लिया ,
मेरी खातिर कोई ना शिकवा किया ;

दिन महीने साल बीत गए ,
अचानक हम फिर जुदा हो गए ;

पर ना आज मैं रोया ,न वह रोते-रोते हंसी थी ;
बस वह मेरे सामने चुपचाप पड़ी थी ,

न जाने क्यों एक कसक दिल में उठी थी,
अबूझ एक पहेली मेरे सामने खड़ी थी ;
समझ ना आया मैं ,उसका प्यार था,
या वह मेरा पहला प्यार थी ;

पर हां

वह मेरी आवश्यकताओं का संसार थी ,
वह मेरा पहला बिस्तर ,खिलौना और आहार थी ;
वह मेरी होली, दिवाली और सारे त्योहार थी;

काश! कि मैं एक बार उसे बता पाऊं ,
कि वह मेरा पहला प्यार थी;

ओ मां! तू ही मेरा पहला प्यार थी.........