...

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मन की पाती
"चाहूँ लिखना तुमको प्रिय पाती,
प्रियतम पर कुछ लिख न मैं पाती,
कोरे कागज़ पर कैसे मन के भाव उकेरू,
शब्दों को प्रेम रंगों से फिर रंग न पाती।

मन वीणा के गुंजित स्वर येही तो कहते,
भावों की सरिता संग प्रिय तुम ही तो बहते,
मिलन मन का संगम सा सुंदर पावन,
अविरल जिसमें हम तुम मिल कर बहते।

अधरों पर तब उसके मुस्कान मधुर बिखरती,
प्रिय प्रेम में रत निहार दर्पण कामिनी संवरती,
श्रृंगार सम्पूर्ण सोलह साजन का प्यार...