ग़ज़ल
खुद को यूं न बदनाम होने दो यार;
बेइज़्ज़ती यूँ न सरेआम होने दो यार।
ख्वाहिश है- लोग रखें याद ताउम्र हमे,
अपने हाथ कुछ ऐसा काम होने दो यार।
दर्दी का दर्द देख रो पढो,इंसान हो तुम;
हाथों से कुछ तो नेक काम होने दो यार।
जाने के बाद भी रहो लोगों की यादों में;
कुछ ऐसा करो,ऐसा नाम होने दो यार।
रावणत्व हटाने की खाओ कसम 'नेहांश';
अपने भीतर अब तो राम होने दो यार।
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नेहांश कुलश्रेष्ठ
उज्जैन, मध्यप्रदेश