एक आवारा लड़का
वो आवारा सा मेरी गलियों में घूमा करता था,
वो दीवानों सा मेरी राह तकता था।
के कहीं मैं दिखूं झरोखे पे उसे,
यही सोच वो मेरे घर के नीचे खड़ा रहता था।।
दिखूं न मैं अगर जो झरोखों पे,
मायूस सा वो उदास...
वो दीवानों सा मेरी राह तकता था।
के कहीं मैं दिखूं झरोखे पे उसे,
यही सोच वो मेरे घर के नीचे खड़ा रहता था।।
दिखूं न मैं अगर जो झरोखों पे,
मायूस सा वो उदास...