...

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उद्धव ब्रज यात्रा
उद्धव ज्ञान घमंड लिए,
पहुंचा वृंदावन धाम।
अहम भरे मन से आया,
करने पूर्ण एक काम।

ज्यों ही वह रथ से उतरा,
ज्यों ही पग नीचे रखा।
ब्रज सुगंध ऐसी समाई,
वृंदावन की करत बढ़ाई।

आभूषण से लदा हुआ वह,
सर पर मुकुट धारण किया।
ब्रजवासी सोचे भला,
किसने यह आगमन किया?

देकर अपना परिचय बोला,
कृष्ण आदेश पर आया हूं।
ब्रिज गोपन को जाकर बता दो,
कृष्ण की चिट्ठी लाया हूं।

गोपिन के कानन में जब,
पड़ी मधुर यह बात।
दौड़ दौड़ कर आई सब,
अपनी सखी के साथ।

कृष्ण तन, कृष्ण मन,
कृष्ण के ही साथ थी।
कृष्ण वर्ण, कृष्ण नैन,
कृष्ण की ही बात थी।

उद्धव देख समझ ना सका,
हर गोपी में कृष्ण थे।
आंखों को सब भ्रम लगा,
मस्तक में कई प्रश्न थे।

पत्र हमारे नाथ का,
पढ़ कर दियो सुनाएं।
हम तो अनपढ़ ग्वालिनें,
बोली वो मुस्काए।

उद्धव ने जब पढ़ा पत्र,
तो गई सब घबराए।
कहते हैं श्रीकृष्ण की,
हमको दो बिसराए।

विरह-पीड़ा सहनी होगी,
लो मुक्ति तुम पाओ।
भूल प्रेम को जीवन में,
केवल आनंद मनाओ।

सुनकर इतने कटु वचन,
नीर नैन से बह गए।
पुष्प प्रेम के जैसे मानो,
एक ही क्षण में ढह गए।

रोती-बिलखती...