...

7 views

#ख़त
#ख़त
तेरे दिये खत गुलाब सब मै जला चुका हूँ
तेरे सपनो तक पर प्रतिबंध लगा चुका हूँ
तेरी गलियों के चक्कर लगाने छोड़ चुका हूँ
बस इक तेरी यादों पर नियंत्रण नही बाकी तुझे
भूल चुका हूँ।

तेरे फरेबो का सच अब मै जान चुका हूँ
कसूर नही था मेरा फिर भी मान चुका हूँ
मै दुःख- दर्दों से तो कब का भर चुका हूँ
कहने को तो ज़िंदा हूँ, पर अंदर से मर चुका हूँ।

मै अब मिलता नही ना गलियों में ना मयखानो
तेरे रकीब ढूँढते है मुझे अखबारों में
जब तलक नफरत रहेगी इश्क़ के बाजारो में
रांझा, मिर्जा मिलते रहेंगे सिर्फ शमशानो में ।।

© Nitish Nagar