Erotica
रात भर चला दौर गुस्ताख़ियों का,
ना जाने कब चूड़ियों की ख़नक
इश्क़ की आहों में तबदील हुई,
रात भर जगते जगाते रहे,
कभी पायल तो कभी चूड़ियाँ
और कभी लबों से लब मिलाते रहे।
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ना जाने कब चूड़ियों की ख़नक
इश्क़ की आहों में तबदील हुई,
रात भर जगते जगाते रहे,
कभी पायल तो कभी चूड़ियाँ
और कभी लबों से लब मिलाते रहे।
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