...

5 views

वास्ता रखा साफ दर्पण सा
जो कभी खत्म न हो ऐसी भी मुलाकात देखी है
जो एक पल में खत्म हो जाये वो साथ भी देखी है

नजरिया तो वही रखा अपनों से अपने पन का
गैरो से भी वास्ता रखा साफ दर्पण सा

जब एक एक करके हाथ की लकीरों से मिटते गए
वो वफ़ा के बदले धोखा और प्यार के बदले नफरत
नए सिरे से वो मेरे नसीब में लिखते रहें

वो मुझे बदनाम करके बेचते रहे शरीफों की बस्ती में
करके छेद मेरी कश्ती में गहरे समंदर के बीच मे

बस तैरते रहे

देख कर भी कर दी मैंने अनदेखी है

ख़ामोश रहा कुछ न कहा किसी से

सोचा कुछ अच्छा भला हो उसका इसी में

जो कभी खत्म न हो ऐसी भी मुलाकात देखी है
जो एक पल में खत्म हो जाये वो साथ भी देखी है ।

© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮

Related Stories