...

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शहर की भीड़
शहर की भीड़ में खो गई कुछ तितलियां ,बुलबुलें, और कोयलें,

फूलों के ऊपर से गायब हो गए सुनहरे काले- काले से भौंरे ,

गायब हो गई मेरे बचपन की यादें,
मिट्टी के खिलौने,
छुपा- छुपी की खेल ,दूब के मखमली बिछौने ,
आम के झूले, और खट्टी कैंरियां, उगना बंद हो गई अब तो, झड़बेरियां,
रास्ते से गायब हो गई है ,घंटी बजाती साइकिलें,
आना बंद हो गई न्यू ईयर,दिवाली पर ग्रीटिंगें ,
है पोस्टकार्ड ,अंतर्देशीय ,पत्र बात गुजरे जमाने की ;
महकती नहीं किसी बगीचे में मेहंदी और गुलमेन्हदियां;

मुद्दत बीत गई खाए हुए,
खट्टी इमली ,मटके वाली कुल्फी;

बारिश भी सावन में अब होती है हल्की-फुल्की ;

मां के हाथों की गरम पकौड़ी खट्टी चटनी ,
पिज़्ज़ा पास्ता ने छीन लिए मेरे मुंह से स्वाद सुनहरी,

त्योहारों पर पकवानों की जगह ले ली खट्टी मीठी चाऊमीन मैगी ने,
मिठाई की जगह ले ली बिस्किट टॉफी चॉकलेट ने ,
बदलते युग की भेंट चढ़ गई ,
मेरे सुनहरे युग की खूबसूरत यादें,

बदल गई सुबह बदल गई शामें , बदल गया मौसम बदल गये हालत ,
गर्मी, सर्दी यहां तक की बरसात,

कब तक और कितना बदलेगा युग ,
हर पल बन जाएगा एक इतिहास,

और इस इतिहास के पन्नों को
खंगालेगा
आने वाला कल
चलाएगा कुछ मुहिम पाने को ज्ञान ,
ढूंढेगा अवशेष छूटे हुए पुराने निशान ,
और यूं ही दिन-दिन बनता जाएगा एक नया इतिहास ;
और इंसान छानता ही रह जाएगा खाक.....
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