...

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दूर कोई
#दूर

दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
ज़िंदगी से जंग लड़ रहा कोई;

है कोई कहीं अपने में ही मगन,
किसी को लगी है कोई लगन;
गुम है कोई अंधेरे में सघन,
कोई मिला रहा नयन से नयन;

दरवाज़े पर ठहरी है किसी की नज़र ,
कर रहा है कोई अंजान सफर;
है किसी को किसी का इंतज़ार,
कोई फिर भी है इन सबसे बेख़बर;

चल रहे है सब अंजान डगर पर,
सता रहा है सबको एक डर;
होगी जीत या फिर होगी हार,
यही सोचते है ,सब मन को बहला कर ;!!

© Anu Mathur