...

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तेरा एहसास
सोंचता हूँ जब भी तुम्हारी याद आती है
जैसे मानो तुम्हारी जिस्म मेरी रुह को छू जाती है।
बेवक्त ही तेरा एहसास दिलाती है
न जाने कितने शितम मुझे दे जाती है।
हर रोज ख्वाबों में तुम्हें देखता हूँ
नींद खुलते ही खुद को तन्हाँ पाता हूँ।
न जाने कैसे बंधन में बंध गया हूँ
आलम तो ये है कि अब स्वच्छंद उड़ना भूल गया हूँ।