रात की मृगतृष्णा !!!
यूँ जो ये अँधेरी राते प्यारी लगने लगी
सोचा न था ज़िन्दगी ऐसी भी हसीन होगी
की सबसे खौफनाक जो मंज़र रुलाते थे
आज अश्को के लिए अपने पास बुलाते हैं ।।
ये तारो को ओढ़ के ये रजनी यु मुश्काती है
अपनी मृगतृष्णा में हमें कुछ यूँ फसाती है
तन्हाइयों को ले के जो हम उसकी गोद में जाते
वैसी कसक भरी सुकून फिर हम कहाँ पाते ।।
पर...
सोचा न था ज़िन्दगी ऐसी भी हसीन होगी
की सबसे खौफनाक जो मंज़र रुलाते थे
आज अश्को के लिए अपने पास बुलाते हैं ।।
ये तारो को ओढ़ के ये रजनी यु मुश्काती है
अपनी मृगतृष्णा में हमें कुछ यूँ फसाती है
तन्हाइयों को ले के जो हम उसकी गोद में जाते
वैसी कसक भरी सुकून फिर हम कहाँ पाते ।।
पर...