...

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कल्पनाऍं जीवन की
शून्य से मैं अंक बनाकर,लिख दूँ अपनी एक किताब,
समाहित हो मेरे जीवन की, जिसमें खुशियाॅं बेहिसाब,,

धरा के ऑंचल का लूँ सहारा,ले लूॅं नभ से मैं एक तारा, सुरसरि सी बहती जाऊँ, मिल ही जाएगा मुझे...