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मै तुम से - हम तक ✍🏻✍🏻✍🏻
तू हवा में शीतलता के जैसे मौजूद है मुझमे
या यूँ कहले तुझसे अलग मेरा वजूद है तुझमे
प्रेम की गणना या अवधारणा करना दुस्कर है
प्रेम जीवन को सार्थक करता मील का पत्थर है
तुम्हारा साथ होना ईश्वरीय संगत का साक्ष्य है
तुम मेरे ह्रदय पर खींची लकीर हो जो अकाट्य है
सांसारिक दुःख एवं सुख तुम संग आधा हो जाता है
प्रेम पूरा हो तो प्रत्येक अधुरापन साझा हो जाता है
मेरे हर दुःख व अकेलेपन का पतझड़ बन जाती हो
किंचित क्लेश न हो अतैव सरहद सी ठन जाती हो
आकाश में कौंधती बिजली धरा जगमग कर देती है
तुम्हारी मौजूदगी मेरी हर कमी को लगभग भर देती है
चंद लफ्ज लिख कर तुम्हे ये सब कहने का क्या होगा
मानस के पास एक अकेला कागज रखने जैसा होगा
तुम आयी तो सुकून मिला सूखी नदी में बहाव लौटा
जैसे चाँद सागर के पास आया तो उतार चढ़ाव लौटा
हाथ थामकर मै और तुम के ठहराव से हम दूर चलें
गैरो की तकरार से अलहदा होकर होकर मशहूर चलें !

© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻