जमाने की कहानी
लिख रही हूं जमाने की कहानी,
जो चाहती हूं मैं जमाने को सुनानी।
हर शख्स को उलझन में घिरे देखती हूं,
सुलझी पहेलियों में उलझी देखती हूं।
किस्सा परेशानियां का ख़तम नहीं होता,
इंसां रोता है फिर भी दर्द कम नहीं होता।
सवालों में भी सवाल अब होने लगे है,
अपने होते होते सब पराए होने लगे हैं।...
जो चाहती हूं मैं जमाने को सुनानी।
हर शख्स को उलझन में घिरे देखती हूं,
सुलझी पहेलियों में उलझी देखती हूं।
किस्सा परेशानियां का ख़तम नहीं होता,
इंसां रोता है फिर भी दर्द कम नहीं होता।
सवालों में भी सवाल अब होने लगे है,
अपने होते होते सब पराए होने लगे हैं।...